Tuesday, September 11, 2007

युवा कर्णधार

युवा कर्णधार

आंखों में भविष्य की कल्पनाए बाजुओं में नविन रुधिर से भरी उर्जा, मुत्ठ्यों में काल के प्रवाह को रोक देने की क्षमता, तनी भृकुटी पर आक्रोश की खिंची रेखाए, ओठों पर खेलती मोहक मुक्सान, तन में आकाश छूने वाली तरंगे, अनुभव विहीन मस्तिक्ष में विश्वास पूरित ऊहा, कुछ गुन-गुनाहट, कुछ खिल-खिलाहट, कुछ तरंग, कुछ उमंग, कुछ मोहक सपने, कुछ विद्वेष भरी खीझ, इंन्द्र धनुषी रंगो मे खोयी - डूबी कुछ कल्पनाए, कुछ दीवानगी भरे कदम, इस सबकुछ को मिलकर एक शब्द में कहा जाए तो वह है - युवा अवस्था।

मादकता सं पूरित अलमस्त जवानी। ये जीवन का सबसे मूल्यवान क्षण है। शबनम की तरह खुबसुरत परंतु तुषार बिन्दु - सा ही क्षणिक, युवा शरीर में नवीन ऊर्जा शक्ति का स्त्रोत इठलाता रहता है। युवाओं की फड्कती शक्ति को सही मार्ग पर लाकर ही देश के भवन की भित्ति को सुदृढ़ किया जा सकता है। युवा स्वर जहाँ मादक और मोहक होता है, वहीँ वह विध्वंसक और विनाशक भी होता है। युवा जहाँ अनुसरण करने वाला दीवाना होता है, वहीँ वह परम्पराओं और मर्यादाओं को तोड़ने वाला विद्रोही भी।

आज का युवक पथभ्रान्त आत्मग्लानि से खिझता, तोड़-फोड़ और विध्वंस से दहकता, नशे और लातों में डूबता, जीवन की समस्याओं से भागता, ज़माने भर से शिक़ायत करता, कुंठाओं से भरा, अनुशासन और शिलवृत्त भंग करत नजर आ रह है।

आज वह एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है, जहाँ उसे रह नजर नहीं आ रही है। अश्लीलता की आग में उनका मन और मस्तिष्क झुलस रह है। तरह-तरह के दुर्व्यसनों से उसका नैतिक पतन हुआ जा रहा है।

"वयं तुभ्यं बलिह्र्तः स्याम"

विश्व मंगल दिवस २ मई २००२ के युवा कर्णधार - परम पूज्य श्रीसुधान्शुजी महाराज

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